संत और कवि कबीर दास की जीवनी, कहानी, धर्मं और रचनाएँ | Kabir das Biography, Story, Religion and Versification work in Hindi
कबीर हिंदी भाषा के भक्ति काल के प्रमुख कवि और समाज सुधारक थे. उनकी मुख्य भाषा सधुक्कड़ी थी लेकिन इनके दोहों और पदों में हिंदी भाषा की सभी मुख्य बोली की झलक दिखलाई पड़ती है. इनकी रचनाओं में ब्रज, राजस्थानी, पंजाबी, अवधी हरयाणवी और हिंदी खड़ी बोली की प्रचुरता थी. कबीर भक्तिकाल की निर्गुण भक्ति धारा से प्रभावित थे. कबीर का प्रभाव हिन्दू, इस्लाम और सिख तीनों धर्मों में मिलता हैं.
बिंदु(Points) | जानकारी (Information) |
---|---|
नाम (Name) | कबीर दास |
जन्म (Birth) | 1438 ईस्वी |
मृत्यु (Death) | 1518 ईस्वी |
जन्म स्थान (Birth Place) | काशी (वाराणसी) |
कार्यक्षेत्र (Profession) | कवि, संत |
पिता का नाम (Father Name) | नीरू जुलाहे |
गुरु (Teacher) | गुरु रामानंद जी |
पत्नी का नाम(Wife Name) | ज्ञात नहीं |
भाषा(Language) | सधुक्कड़ी (मूल भाषा) ब्रज, राजस्थानी, पंजाबी, अवधी (साहित्यिक भाषा) |
कबीर का जन्म कब और कहाँ हुआ था इसके बारे में इतिहासकारों के बीच में द्वन्द हैं. कबीर के जन्म स्थान के बारे में तीन मत सामने आते हैं मगहर, काशी और आजमगढ़ का बेलहरा गाँव.
अधिकतर इतिहासकार इस बारे में यकीन रखते हैं कि कबीर का जन्म काशी (वाराणसी) में हुआ था. यह बात कबीर के दोहे की इस पंक्ति से जानने को मिलती हैं.
एक प्रचलित कथा के अनुसार कबीर का जन्म 1438 ईसवी को गरीब विधवा ब्राह्मणी के यहाँ हुआ था. जिसे ऋषि रामानंद जी ने भूलवश पुत्रवती होने का आशीर्वाद दे दिया था. विधवा ब्राह्मणी ने संसार की लोक-लाज के कारण नवजात शिशु को लहरतारा ताल के पास छोड़ दिया था. शायद इसी कारण शायद कबीर सांसारिक परम्पराओं को कोसते नजर आते थे.
एक कथा के अनुसार कबीर का पालन-पोषण नीरू और नीमा के यहाँ मुस्लिम परिवार में हुआ. नीरू को यह बच्चा लहरतारा ताल के पास मिला था. कबीर के माता- पिता कौन थे इसके बारे में एक निश्चित राय नहीं हैं. कबीर नीरू और नीमा की वास्तविक संतान थी या उन्होंने सिर्फ उनका लालन-पोषण किया इसके बारे में इतिहासकारों के अपने-अपने मत है.
कबीर की शिक्षा के बारे में यहाँ कहा जाता हैं कि कबीर को पढने-लिखने की रूचि नहीं थी. बचपन में उन्हें खेलों में किसी भी प्रकार शौक नहीं था. गरीब माता-पिता होने से मदरसे में पढ़ने लायक स्थिति नहीं थी. दिन भर भोजन की व्यवस्था करने के लिए कबीर को दर-दर भटकना पड़ता था. इसी कारण कबीर कभी किताबी शिक्षा नहीं ले सके.
आज हम जिस कबीर के दोहे के बारे में पढ़ते हैं वह स्वयं कबीर ने नहीं बल्कि उनके शिष्यों ने लिखा हैं. कबीर के मुख से कहे गए दोहे का लेखन कार्य उनके शिष्यों ने किया था. उनके शिष्यों का नाम कामात्य और लोई था. लोई का नाम कबीर के दोहे में कई बार इस्तेमाल हुआ हैं. संभवतः लोई उनकी बेटी और शिष्या दोनों थी.
कबीर का पालन-पोषण बेहद ही गरीब परिवार में हुआ था. जहाँ पर शिक्षा के बारे में तो सोचा भी नहीं जा सकता था. उस दौरान रामानंद जी काशी के प्रसिद्द विद्वान और पंडित थे. कबीर ने कई बार उनके आश्रम में जाने और उनसे मिलने की विनती की लेकिन उन्हें हर बार भगा दिया जाता था और उस समय जात-पात का भी काफी चलन था. ऊपर से काशी में पंडों का भी राज रहता था.
एक दिन कबीर ने यह देखा कि गुरु रामानंद जी हर सुबह 4-5 बजे स्नान करने के लिए घाट पर जाते हैं. कबीर ने पूरे घाट पर बाड लगा दी और बाड का केवल एक ही हिस्सा खुला छोड़ा. वही पर कबीर रात को सो गए. जब सुबह-सुबह रामानंद जी स्नान करने आये तो बाड देखकर ठीक उसी स्थान पर से निकले जहाँ से कबीर ने खुली जगह छोड़ी थी. सूर्योदय से पूर्व के अँधेरे में गुरु ने कबीर को देखा नहीं और कबीर के पैर पर चढ़ गए. जैसे ही गुरु पैर पर चढ़े कबीर के मुख से राम राम राम निकल पड़ा.
गुरु को प्रत्यक्ष देख कबीर बेहद ही खुश हो गए उन्हें उनके दर्शन भी हो गए, चरण पादुकाओं का स्पर्श भी मिल गया और इसके साथ ही राम नाम रूपी भक्तिरस भी मिल गया. इस घटना के बाद रामानंद जी ने कबीर को अपना शिष्य बना लिया.
कबीर दास के एक पद के अनुसार जीवन जीने का सही तरीका ही उनका धर्मं हैं. वह धर्मं से न हिन्दू हैं न मुसलमान. कबीर दास जी धार्मिक रीति रिवाजों के काफी निंदक रहे हैं. उन्होंने धर्म के नाम पर चल रही कुप्रथाओं का भी विरोध किया हैं. कबीर दास का जन्म सिख धर्मं की स्थापना के समकालीन था इसी कारण उनका प्रभाव सिख धर्मं में भी दिखता हैं. कबीर ने अपने जीवन काल में कई बार हिन्दू और मुस्लिमो का विरोध झेलना पड़ा.
संत कबीर की मृत्यु सन 1518 ई. को मगहर में हुई थी. कबीर के अनुयायी हिन्दू और मुसलमान दोनों ही धर्मों में बराबर थे. जब कबीर की मृत्यु हुई तब उनके अंतिम संस्कार पर भी विवाद हो गया था. उनके मुस्लिम अनुयायी चाहते थे कि उनका अंतिम संस्कार मुस्लिम रीति से हो जबकि हिन्दू, हिन्दू रीति रिवाजो से करना चाहते थे. इस कहानी के अनुसार इस विवाद के चलते उनके शव से चादर उड़ गयी और उनके शरीर के पास पड़े फूलों को हिन्दू मुस्लिम में आधा-आधा बाँट लिया. हिन्दू और मुसलमानों दोनों से अपने तरीकों से फूलों के रूप में अंतिम संस्कार किया. कबीर के मृत्यु स्थान पर उनकी समाधी बनाई गयी हैं.
कबीर के नाम पर एकसठ रचनाएँ उपलब्ध हैं. जिसके नाम निम्नानुसार हैं
इसे भी पढ़े :
Copyright ©waxtry.xb-sweden.edu.pl 2025